शुरुआत
"..शहर में रहना मज़बूरी पेट की, पर गांव जो भीतर रचा-बसा है,उसे कहा, किस गली, किस नुक्कड़ ,और किस चौराहे पर कर दू नीलाम, बिन मोल लिए,,,,है कोई तैयार,,,,...शायद कहीं मिल जाये कोई ,,मेरा पेट भर जाये....... और फिर सो सकूँ अपनी अमराई में ...... फिर से जागे गाँव मेरे भीतर का ..... "
bhai sahab aapka swagat hai.
ReplyDeleteummeed hai ganw dehat ki baat se ham rub ru honge. aapki batkahi pasand aai.
bhaiya,,,,,,blog me ummid bahut hai aapse,,,,...sachhi.
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